कुंज में बैठा रहूं यूं पर ख़ुला
काश ,कि होता क़फ़स का दर ख़ुला
हम पुकारें और खुले ,यूं कौन जाय
यार का दरवाजा पायें गर ख़ुला
हमको है इस राज़दारी पर घमण्ड
दोस्त का है राज़ ,दुश्मन पर ख़ुला
वाकई दिल पर,भला लगता था दाग़
ज़ख्म ,लेकिन दाग़ से बेहतर ख़ुला
हाथ से रख दी कब अबरू ने कमां
कब कमर से गमज़े की ख़ंजर ख़ुला
मुफ़्त का किसको बुरा है बदरक़ा
रहरवी में परद - ए - रहबर ख़ुला
सोज़े-दिल का,क्या करे बाराने-अश्क
आग भड़की,मुंह अगर दम भर ख़ुला
नामे के साथ आ गया पैगामे - मर्ग
रह गया ख़त मेरी छाती पर ,ख़ुला
देखियो ,ग़ालिब से गर उलझा कोई
है वली पोशीदा ,और काफ़िर ख़ुला
साभार :ग़ालिब
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गमज़े=हाव-भाव
बदरक़ा=मार्ग-दर्शक
परद-ए-रहबर =अगुवा का भेद
बाराने -अश्क=अश्रु-वृष्टि
पैगामे-मर्ग =मृत्यु-सन्देश