Thursday, August 18, 2011

दिये से मिटेगा न मन का अन्धेरा ............

दिये से मिटेगा न मन का अन्धेरा 
धरा को उठाओ गगन को झुकाओ !!

बहुत बार आई-गई यह दिवाली 
मगर तम जहाँ था वहीं पर खड़ा है ,
बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक 
कफ़न रात का हर चमन पर पड़ा है ,
न फिर सूर्य रूठे ,न फिर स्वप्न टूटे 
ऊषा को जगाओ ,निशा को सुलाओ !
दिये से मिटेगा न मन का अन्धेरा 
धरा को उठाओ गगन को झुकाओ !!

सृजन-शान्ति के वास्ते है जरूरी 
कि हर द्वार पर रौशनी गीत गाये 
तभी मुक्ति का यज्ञ  यह पूर्ण होगा ,
कि जब प्यार तलवार से जीत जाए ,
घृणा बढ़ रही है ,अमा चढ़ रही है
मनुज को जिलाओ ,दनुज को मिटाओ ! 
दिये से मिटेगा न मन का अन्धेरा 
धरा को उठाओ गगन को झुकाओ !!

बड़े वेगमय पंख हैं रोशनी के 
न वह बंद रहती किसी के भवन में ,
किया कैद जिसने उसे शक्ति-छल से 
स्वयं उड़ गया वह धुआँ बन पवन में ,
न मेरा-तुम्हारा ,सभी का प्रहर यह 
इसे भी बुलाओ उसे भी बुलाओ !
दिये से न मिटेगा न मन का अन्धेरा 
धरा को उठाओ ,गगन को झुकाओ !!
                                              - नीरज

Sunday, August 14, 2011

मर के भी कब तक निगाहे - शौक़ को रुसवा करें ...........

मर के  भी  कब  तक  निगाहें -शौक़  को  रुसवा करें 
ज़िन्दगी तुझ को  कहाँ  फैंक आयें ,आखिर क्या करें

ज़ख्मे-दिल  मुमकिन  नहीं तो चश्मे-दिल ही वा करें१ 
वो    हमें    देखें   न    देखें   हम   उन्हें    देखा   करें 

ऐ  मैं  कुर्बां  मिल  गया  अर्जे-मोहब्बत   का  सिला 
हाँ  उसी  अंदाज़  से  कह  दो ,तो फिर हम क्या करें

देखिये   क्या   शोर   उठता   है   हरीमे - नाज़   से२ 
सामने  आईना  रख  कर  ख़ुद  को इक सिज्दा करें

हाए  ये   मजबूरियां   , महरूमियां   ,  नाकामियां
इश्क़ आखिर इश्क़ है ,तुम क्या करो ,हम क्या करें

                                            - जिगर मुरादाबादी 
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१:मन के नेत्र ही खोलें
२:प्रेयसी के घर की चारदीवारी से

Thursday, August 4, 2011

अल्लाह अगर तौफ़ीक न दे .........

अल्लाह  अगर  तौफ़ीक   न  दे  इंसान   के   बस   का   काम  नहीं 
फ़ैज़ाने - मोहब्बत१   आम  सही , इर्फ़ाने - मोहब्बत२   आम  नहीं 

ये  तूने   कहा  क्या  ऐ   नादां  , फ़ैयाज़ी -  ऐ - क़ुदरत३  आम  नहीं 
तू  फिक्रो - नज़र४  तो  पैदा   कर , क्या  चीज़  है  जो  इनाम  नहीं 

यारब ये मुक़ाम-ऐ-इश्क़ है क्या ?गो दीदा-ओ-दिल५  नाकाम नहीं 
तस्कीन   है   और  तस्कीन   नहीं ,  आराम  है  और  आराम  नहीं 

आना  है  जो  बज्मे - जानां६  में , पिन्दारे - ख़ुदी  को७  तोड़ के आ 
ऐ  होशो - ख़िरद  के८  दीवाने , यां  होशो - ख़िरद  का   काम   नहीं 

इश्क़  और  गवारा  ख़ुद  कर   ले  बेशर्त  शिकस्ते - फाश९  अपनी 
दिल  की  भी  कुछ  उनके साज़िश है ,तन्हा ये नज़र का काम नहीं 


सब  जिसको  असीरी१०   कहते  हैं , वो  तो  है  असीरी  ही  लेकिन 
वो  कौन  सी  आज़ादी  है  जहां , जो  आप  ख़ुद अपना दाम११  नहीं 

                                                                     -जिगर मुरादाबादी 
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१ :प्रेम की उदारता 
२ :प्रेम की पहचान 
३ :प्रकृति की उदारता 
४ :चिन्तन और परख 
५ :दृष्टि और दिल 
६ :प्रेयसी की महफ़िल 
७ :अहंकार 
८ :बुद्धि के 
९ :पराजय 
१० :क़ैद 
११ :जाल  

इबादत ........ .

इबादत  करते  हैं जो  लोग जन्नत  की तमन्ना में 
इबादत तो  नहीं  है  इक  तरह  की  वो तिजारत है 

जो डर कर  नारे -  दोज़ख़ से खुदा  का नाम लेते हैं 
इबादत क्या वो ख़ाली बुजदिलाना एक ख़िदमत है 

मगर जब शुक्रे-नेमत में जबीं झुकती  है बन्दे की 
वो  सच्ची  बन्दगी  है , इक  शरीफ़ाना  इताअत है 

कुचल  दे  हसरतों  को  बेनियाज़े  - मुद्दुआ  हो  जा 
ख़ुदी को६ झाड़  दे  दामन से मरदे - बाखुदा हो  जा 

उठा  लेती  हैं  लहरें  तहनशीं  होता  है जब   कोई
उभरना है  तो  ग़र्के - मौजे -  बहरे -  फ़ना  हो  जा९  

                                                    -जोश मलीहाबादी  
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१ :नरक की आग से
२ :धन्यवाद स्वरूप 
३ :माथा 
४:आराधना 
५ :फल प्राप्ति के प्रति विमुख 
६ :अहं को 
७ :ख़ुदा का बन्दा 
८ :डूब जाता है 
९ :अनस्तित्व रूपी सागर की लहरों में डूब जा  
इबादत