Thursday, April 19, 2012

बे-सियाही न चला काम कलम का ऐ 'ज़ौक'

हम  हैं  और  साया तीरे  कूचे  की दीवारों का 
काम जन्नत में है क्या हम से गुनहगारों का 

मोहतसिब दुश्मने-जां गरचे है मयख्वारों का 
दीजै  इक  जाम  तो  है  यार  अभी  यारों का 

हाए वो आशिके-जांबाज़ कि इक मुद्दत तक 
ह्द्फे - तीर१  तुझ  से  कमांदारों   का 

चर्ख  पर२  बैठ  रहा  जान  बचा  कर  ईसा 
हो  सका  जब  न  मुदावा३  तेरे बीमारों का 

बे-सियाही न चला काम कलम का ऐ 'ज़ौक'
रू-सियाही४ ,सरो-सामां है सियह्कारों५  का 
                                                   -ज़ौक 
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१ : लक्ष्य 
२ :आकाश पर
३ :इलाज़
४ :बदनामी
५ :पापियों का 

Saturday, April 14, 2012

जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा

जुदा  हों  यार  से  हम  और न हो रक़ीब जुदा
है  अपना - अपना  मुकद्दर जुदा ,नसीब जुदा


तिरी गली से निकलते ही अपना दम निकला
रहे   हैं  क्योंकि  गुलिस्ता   से  अंदलीब  जुदा

फ़िराके-ख़ुल्द से गंदुम है सीना-चाक अब तक
इलाही  हो  न  हो  वतन  से  कोई  ग़रीब  जुदा

करें जुदाई का किस-किस का रंज हम ऐ "ज़ौक"
कि  होने  वाले  हैं  हम  सबसे  अनक़रीब  जुदा  
                                                        -"ज़ौक"

Thursday, April 12, 2012

मज़े जो मौत के आशिक बयां करते

मज़े  जो  मौत  के  आशिक  बयां  करते 
मसीहो - खिज्र  भी  मरने की आर्ज़ू करते 

अगर ये जानते चुन-चुन के हम को तोड़ेंगे 
तो गुल कभी न तमन्ना- ए- रंगो-बू करते 

समझ ये दारो-रसन ,तारो-सोज़न ऐ मंसूर 
कि चाके - पर्दा हक़ीक़त का है रफ़ू  करते 

यकीं है सुब्हे-क़यामत को भी सुबूही-कश
उठेंगे ख़्वाब  से  साक़ी  , सुबू - सुबू  करते 
                                                         -ज़ौक