जब कोई कहता है हस्ती को हस्ती खूब है
उसकी गफ़लत पर फ़ना उस वक़्त हँसती खूब है
तौबा है साकी नहीं पीने का मैं जामे - शराब
मुझको अपनी बादा- ए- वहदत की मस्ती ख़ूब है
मुल्क दुनिया की तो आबादी है वीराना तमाम
और बसती है जहाँ इक ख़ल्क़ बसती ख़ूब है
'ज़फ़र' आंखें कह देती हैं तेरी , क्या छुपाता है
मए- उल्फ़त की कैफ़ियत छुपाये से नहीं छुपती
साभार : ज़फ़र
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हस्ती : अस्तित्व
फ़ना : मृत्यु
ख़ल्क़ : सृष्टि
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