Saturday, March 9, 2013

गमगुसारी


दोस्त मायूस न हो 
सिलसिले टूटते बनते ही रहे हैं आखिर 
तेरी पलकों पे सरअश्कों के सितारे कैसे
तुझको गम है तेरी महबूब तुझे मिल न सकी 
और जो जीस्त तराशी थी तेरे ख्वाबों ने
आज वो ठोस हक़ायक़ में कहीं टूट गयी
तुझको मालूम है मैंने भी मुहब्बत की थी
और अंजामे-मुहब्बत भी है मालूम तुझे 
किसने पायी है भला जीस्त की तल्खी से निजात 
चारो-नाचार ये जहराब सभी पीते हैं  
जां-सपारी के फरेबिन्दा फसानों पे न जा 
कौन मरता है  मुहब्बत में सभी जीते हैं 
वक़्त हर जख्म को हर गम को भुला देता है 
वक़्त के साथ ये सदमा भी गुज़र जायेगा 
और ये बातें जो दुहराई हैं मैंने इस वक़्त 
तू भी एक रोज इन्हीं बातों को दुहरायेगा 
दोस्त मायूस न हो.
                      -अहमद राही  
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4 comments:

  1. लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...

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  2. वाह ... क्या बात है ... बेहद उम्दा ... इसे सांझा करने के आपका बहुत बहुत आभार !

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  3. बहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये
    कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे

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