Friday, June 7, 2013

ज़फ़र --- बराबर अपना है हर एक यार से इख़लास

बराबर अपना  है  हर एक  यार से इख़लास 
न ये कि चार से नफरत तो चार से इख़लास 
जो  मेरा  दुश्मने-जाँ  है वो है उसी का दोस्त 
करे है कब वो  किसी  दोस्तदार से इख़लास 
न  बोल  मुझसे  तू  नासेह  कि मैं हूँ दीवाना 
तू  होशियार  है  कर  होशियार से  इख़लास 
बगैर  रंजो-मुसीबत  सिवाय  हसरतो-यास 
रखे  है  कौन  दिले - बेक़रार  से   इख़लास 
गुरुर  था  हमें  क्या  अपनी  पारसाई  का !
न था हमारा जब इस बादा-ख़्वार से इख़लास 
जहाँ में जितने कि हैं बदनसीबो-बदकिस्मत 
"ज़फ़र"वो रखते हैं इस बद-शुआर से इख़लास 
                                                           -ज़फ़र 

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