Saturday, August 10, 2013

अनु -- प्यार की परिभाषा



तुम्हारे लिए प्यार था
ज़मीं से फलक तक साथ चलने का वादा
और मैं खेत की मेड़ों पर हाथ थामे चलने को
प्यार कहती रही....
तुम  चाँद तारे तोड़ कर
दामन में टांकने की बात को प्यार कहते रहे
मैं तारों भरे आसमां तले
बेवजह हँसने और  बतियाने को
प्यार समझती रही….
तुम सारी दुनिया की सैर करवाने को
प्यार जताना कहते,
मेरे लिए तो  पास के मंदिर तक जाकर
संग संग दिया जलाना प्यार था...
तुम्हें मोमबत्ती की रौशनी में
किसी आलीशान होटल में
लज़ीज़ खानाप्यार लगता था
मुझे रसोई में साथ बैठ,एक थाली से
एक दूजे को
निवाले खिलने में प्यार दिखा...

शहंशाही प्यार था तुम्हारा...बेशक ताजमहल सा तोहफा देता... मौत के बाद भी.

मगर मेरी चाहतें तो थी छोटी छोटी
कच्ची-पक्की
खट्टी मीठी.......चटपटी
ठीक  ही कहते थे तुम
शायद पागल ही थी मैं.
             - अनु 

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर सी रचना..

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  2. शुक्रिया निवेदिता......
    <3

    सस्नेह
    अनु

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    1. चलो हम भी शुक्रिया कर ही दें अनुमति देने का :)

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  3. बहुत अच्छी रचना
    बहुत सुंदर

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  4. बहुत सुंदर कविता अनु की ....प्यार की परिभाषा बदल भी दो ....फिर भी प्यार तो प्यार ही है न ...सुंदर सोच ...अनु बधाई ।
    संग्रहणीय कविता है निवेदिता जी ॰

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