याद करो वो रात..
वो आखिरी मुलाकात..
जब थामते हुए मेरा हाथ
हाथों में अपने
कहा था तुमने...
लिख देती हूँ
मैं अपना नाम
हथेली पर तुम्हारी
सांसों से अपनी ...
फिर ...
कर दी थी तुमने..
अपनी हथेली सामने मेरे ..
कि लिख दूँ मैं भी
अपना नाम उस पर
सांसों से अपनी.....
कहा था तुमने...
सांसों से लिखी इबारत..
कभी मिटती नहीं..
कभी धुलती नहीं..
चाहें आसूँओं का सैलाब भी
उतर आये उन पर..
वो दर्ज रहती हैं
खुशबू बनी हरदम.. हर लम्हा...
साथ में हमारे.....
आज बरसों बाद जब...
बांचने को कल अपना...
खोल दी है मैने.... मुट्ठी अपनी.....
तब...हथेली से उठी...
उसी खुशबू के आगोश में...
ए जिन्दगी!!..
एक बार फिर .....अपने बहुत करीब....
अहसासा है तुम्हें!!....
“मैं ज़िन्दगी की किताब में, यूँ अपना पसंदीदा कलाम लिखता हूँ..
लिख देता हूँ तुम्हारा नाम, और फिर तुमको सलाम लिखता हूँ......”
bahut sundar rachna.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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