Sunday, February 13, 2011

ज़फ़र की शायरी

कीजे ना दस में बैठ के आपस की  बातचीत 
पहुचेगी दस हजार जगह दस  की  बातचीत 
कब तक रहें ख़ामोश कि ख़ातिर  से आपकी 
हमने बहुत सुनी कसो - नाकस की बातचीत 
मुद्दत के बाद हज़रते - नासेह ! करम  किया 
फ़रमाइए  मिज़ाजे -  मुक़द्दस  की  बातचीत
पर तर्के- इश्क़  के  लिए  इर्शाद  कुछ  न  हो
मैं क्या करूं नहीं यह मेरे  बस  की  बातचीत 
क्या याद आ गया है ज़फ़र पंजा - ए - निगार 
कुछ हो रही  है बंदो - मुखम्मस की बातचीत 


       साभार : ज़फ़र 
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कसो - नाकस =किस -किस की 
मिज़ाजे - मुक़द्दस = पवित्र मिज़ाज 
इरशाद = आज्ञा 
पंजा - ए - निगार  =महबूब के मेहंदी लगे हाथ 
बंदो - मुखम्मस  = पांच - पांच मिसरों के बंद वाली कविता 

4 comments:

  1. मैंने इसे अपने पास भी नोट कर के रख लिया है.
    आप के इस ब्लॉग पर भी बहुत अच्छा लगता है.

    सादर

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  2. जफर जी की इस बेहतरीन शायरी को प्रेम दिवस की पूर्व संध्‍या पर प्रस्‍तुत करने के लिए आपका आभार।

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  3. ज़फर की शायरी से परिचय कराने के लिए आभार..

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  4. एक से एक शायरी और ग़ज़लें पढ़ने को मिली आपके ब्लॉग पे.. :)

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