Saturday, April 2, 2011

शिकवे के नाम से ,बेमेहर खफ़ा होता है ........

शिकवे  के   नाम   से ,  बेमेहर  ख़फ़ा   होता   है 
यह भी मत कह,कि जो कहिये,तो गिला होता है 
पुर   हूं  मैं  शिकवे  से  यों , राग  से  जैसे  बाजा 
इक  ज़रा  छेडिये , फिर  देखिये , क्या  होता  है 
गो   समझता  नहीं , पर   हुस्ने - तलाफ़ी  देखो 
शिकव - ए - जौर  से , सरगर्मे - जफ़ा  होता  है 
इश्क़ की राह में , है चर्खे - मकौकब की वो चाल 
सुस्त   रौ   जैसे   कोई   आबला   पा   होता   है 
क्यों  न  ठहरे  हदफे - नावके - बेदाद , कि  हम 
आप   उठा  लाते   हैं , गर  तीर  खता  होता   है 
खूब था , पहले से होते जो हम अपने  बदख्वाह
कि   भला   चाहते    हैं    और   बुरा   होता    है 
                                            साभार :ग़ालिब 
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बेमेहर =निर्मोही 
हुस्ने-तलाफ़ी =सुन्दर विधि से क्षतिपूर्ती 
शिकव-ए-जौर =अत्याचार की शिकायत 
सरगर्मे -जफ़ा =अत्याचार में व्यस्त 
चर्खे -मकौकब =तारों भरा गगन 
हदफे-नावके-बेदाद =ज़ुल्म के तीर का निशाना  

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