Wednesday, December 25, 2013

~कैफ़ भोपाली ~ बच्चा बच्चा तेरा दिवाना लगता है

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है

तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है


आग का क्या है पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है

पाँव ना बाँधा पंछी का पर बाँधा
आज का बच्चा कितना सयाना लगता है

सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है

सुनने वाले घंटों सुनते रहते हैं
मेरा फसाना सब का फसाना लगता है

‘कैफ’ बता क्या तेरी गज़ल में जादू है
बच्चा बच्चा तेरा दिवाना लगता है
~  कैफ़ भोपाली  ~

2 comments:

  1. ये लीजिये आपके संकलन में एक और ग़ज़ल "कैफ़" साहब ही की है....
    तेरा चेहरा सुब्ह का तारा लगता है
    सुब्ह का तारा कितना प्यारा लगता है

    तुम से मिल कर इमली मीठी लगती है
    तुम से बिछड़ कर शहद भी खारा लगता है

    रात हमारे साथ तू जागा करता है
    चाँद बता तू कौन हमारा लगता है

    किस को खबर ये कितनी कयामत ढाता है
    ये लड़का जो इतना बेचारा लगता है

    तितली चमन में फूल से लिपटी रहती है
    फिर भी चमन में फूल कँवारा लगता है

    ‘कैफ’ वो कल का ‘कैफ’ कहाँ है आज मियाँ
    ये तो कोई वक्त का मारा लगता है

    :-)
    सस्नेह
    अनु

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  2. आग का क्या है पल दो पल में लगती है
    बुझते बुझते एक ज़माना लगता है!

    वाह !

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