हमको मिल गया पहिला वाला साइड लोअर सीट. हर दस पाँच मिनिट पर टॉयलेट आने जाने वाला लोग बीच का दरवाजा का खोलकर चला जाता था, अऊर ऊ अपने आप बंद होता था धड़ाम से. हम समझ गए कि रात भर एही चलने वाला है. रेलवे का तकिया से कान बंद कर के सोना पड़ेगा. एक नजर पड़ोस में डाले, त देखे कि बगल में एगो आदमी पचीस छब्बीस साल का, उसके साथ उसकी गर्भवती पत्नी अऊर एक पैंतीस चालीस की औरत. उसकी पत्नी का पेट देखकर समझ में आया गया कि बस प्रसव का दिन करीब है. गोस्सा भी आया कि ऐसा टाइम में काहे सफर कर रहा है, लेकिन रहा होगा कोनो मजबूरी, कौन जाने.
( चित्र साभारः mikophotography)
आधा रात के बाद नींद गहराया होगा कि हमको कराहने का आवाज सुनाई दिया. घबरा कर हम उठ कर बईठ गए. सामने पर्दा लगा हुआ था अऊर उसी के पीछे से कराहने का आवाज आ रहा था. अब हमरे मन में भी परिस्थिति को देखकर डर समाने लगा. हम उठकर पूछे उस आदमी से लेकिन ऊ बोला कि घबराने का कोनो बात नहीं है.
उसके बाद हम सो नहीं सके, काहे कि उसका कराहना बढता जा रहा था अऊर पूरा डिब्बा में खाली हम जाग रहे थे. सब लोग अपना एयर कंडीशंड बर्थ पर तकिया से कान दबाकर सोया रहा. अब हमरा घबराहट गोस्सा में बदल गया. हम ऊ आदमी से बोले, “ अईसा हालत में आप काहे लेकर जा रहे हैं दिल्ली. घर में लोग नहीं है कि घर से निकाल दिया है?”
“नहीं, ई बात नहीं है. हम फौज में हैं, दिल्ली में फौजी अस्पताल में सब मुफ्त में हो जाएगा.”
“पागल कहीं का, मुफ्ते में डिलिभरी करवाना था त पटना में दानापुर मिलिट्री हॉस्पीटल नहीं था!!”
उसके बाद त हमरा गोस्सा बढा जा रहा था. उ आदमी भी परेसान बुझाया. सबसे जादा परेसानी ई था कि ऊ औरत का दर्द अऊर बेचैनी बढ़ रहा था. सुबह के टाइम में लोग का नींद भी बहुत गाढा हो गया. गाड़ी सीधा दिल्ली रुकने वाला अऊर हमलोग अभी टुंडला से निकले थे. लग रहा था कि ई औरत दिल्ली तक जाने का हालत में नहीं है. उसका चेहरा एकदम पीला होता जा रहा था.
अब हम उठे अऊर पहिला बार अपना पिताजी का दिया हुआ रेलवे ज्ञान इस्तेमाल किए. कण्डक्टर से रिजर्वेसन का चार्ट लेकर सबसे पहिले देखे कि कोनो डॉक्टर सफर कर रहा है कि नहीं. देखे कि दू डिब्बा आगे एगो डॉक्टर था. हम भागे, मन ही मन एही मनाते हुए कि कहीं ऊ पीएच. डी. वाला न हो. खैर ऊ डॉक्टर को हम बिनती किए अऊर समझाए. सीरियस समझ कर ऊ भी नहीं आना चाहा. मगर हमरा बात सुनकर अऊर अनजान आदमी को परेसान देखकर ऊ आया, नब्ज देखा अऊर बोला कि देरी करने से परेसानी हो सकता है. अऊर केस अईसा है कि बिना इंतजाम के कुछ भी नहीं किया जा सकता है.
हम उसको धन्यवाद दिए अऊर क्ण्डक्टर को बोले की वॉकी टॉकी पर गाड़ी के इंचार्ज गार्ड से बात करवाओ. ऊ बोला नहीं हो पाएगा. मगर हमरे अन्दर पता नहीं कहाँ से अजीब सक्ति समा गया था. हम बोले, “ नहीं होगा त तुम सब जेल जाओगे. हमको सिखाते हो. हमरे पिताजी एही सेक्सन पर काम करते थे अऊर हमको सब पता है.”
ऊ घबराया कि हमरा बात से संतुष्ट हुआ, मगर हमको वॉकी टॉकी लाकर पकड़ा दिया. हम गार्ड से बोले, “सर यहाँ जिंदगी मौत का सवाल है. आपको अलीगढ़ में गाड़ी रुकवानी होगी. और वहाँ मेडिकल युनिट को प्लेट्फॉर्म पर रहने को कहना होगा.”
“मैं ख़बर करता हूँ. मगर आपको सिर्फ दो मिनट का समय मिलेगा.”
“धन्यवाद सर! दो मिनट बहुत होते हैं.”
ऊ फौजी हमरा मुँह देख रहा था, औरत चीख रही थी, मगर अब चीख का आवाज़ कुछ कम हो गया .हम उस आदमी को कहे कि सामान दरवाजा पर लेकर जाओ. गाड़ी रुकते के साथ सामान लेकर अपनी दीदी (जो औरत साथ में थी) को उतरने को बोलो, अगिला दरवाजा से. ई दरवाजा से हम दुनो मिलकर इनको बिछावन समेत उठाकर नीचे ले जाएंगे. तब तक स्ट्रेचर भी आ जाएगा.
अलीगढ़ इस्टेसन के पहिले ही जब गाड़ी में झटका लगा त हम समझ गए कि गाड़ी मेन लाइन से लूप लाइन में आ गया है यानि प्लेटफारम पर. भागकर देखे त आधा दर्जन नर्स का टीम स्ट्रेचर लेकर खड़ा था. ऊ आदमी औरत का सिरहाना पकड़ा अऊर हम दुनो गोड़ के तरफ से धीरे से सहारा देकर उठाए.
संजोग देखिए, दरवाजा तक पहुँचते पहुँचते हमको नबजात बच्चा का रोने का आवाज सुनाई दिया. तब तक हम स्ट्रेचर पर उस औरत को उतार चुके थे. उसका चीख तेज होकर बंद हो गया था. हम अबाक पायदान पर खड़े थे. गाड़ी चलने लगा. अचानक ऊ औरत स्ट्रेचर पर से करवट बदली अऊर हमरे तरफ घूमकर देखी. उसका आँख से मोटा मोटा लोर टपक रहा था.