क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
मैं दुखी जब - जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई ,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा
रीति दोनों ने निभाई ,
किंतु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी ;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा ?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रुधारा ?
सत्य को मूँदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी ?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
........बच्चन
क्या करूँ ?
मैं दुखी जब - जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई ,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा
रीति दोनों ने निभाई ,
किंतु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी ;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा ?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रुधारा ?
सत्य को मूँदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी ?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
........बच्चन