क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
मैं दुखी जब - जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई ,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा
रीति दोनों ने निभाई ,
किंतु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी ;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा ?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रुधारा ?
सत्य को मूँदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी ?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
........बच्चन
क्या करूँ ?
मैं दुखी जब - जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई ,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा
रीति दोनों ने निभाई ,
किंतु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी ;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा ?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रुधारा ?
सत्य को मूँदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी ?
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
क्या करूँ ?
........बच्चन
उत्कृष्ट....साझा करने का आभार
ReplyDelete.अच्छी कविता .......साझा करने का शुक्रिया.
ReplyDeleteबच्चन जी की है ...?
ReplyDeleteतभी पढ़ी पढ़ी सी लगी .....
आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी इस विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज दिनांक ८ मई, २०१३, बुधवार के ब्लॉग बुलेटिन - कर्म की मिठास में शामिल किया है | कृपया बुलेटिन ब्लॉग पर तशरीफ़ लायें और बुलेटिन की अन्य कड़ियों का आनंद उठायें | हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर भी आइयेगा |