Friday, April 19, 2013

बच्चन .........क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?

क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
         क्या करूँ ?
मैं दुखी जब - जब हुआ 
संवेदना तुमने दिखाई ,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा 
रीति दोनों ने निभाई , 
किंतु इस आभार का अब 
हो उठा है बोझ भारी ;

क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
         क्या करूँ ?

एक भी उच्छ्वास मेरा 
हो सका किस दिन तुम्हारा ?
उस नयन से बह सकी कब 
इस नयन की अश्रुधारा ?
सत्य को मूँदे रहेगी 
शब्द की कब तक पिटारी ?

क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी ?
         क्या करूँ ?

                              ........बच्चन 

5 comments:

  1. उत्कृष्ट....साझा करने का आभार

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  2. .अच्छी कविता .......साझा करने का शुक्रिया.

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  3. बच्चन जी की है ...?
    तभी पढ़ी पढ़ी सी लगी .....

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  4. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी इस विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज दिनांक ८ मई, २०१३, बुधवार के ब्लॉग बुलेटिन - कर्म की मिठास में शामिल किया है | कृपया बुलेटिन ब्लॉग पर तशरीफ़ लायें और बुलेटिन की अन्य कड़ियों का आनंद उठायें | हार्दिक बधाई |

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  5. बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
    मेरे ब्लॉग पर भी आइयेगा |

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