-अहमद राहीदोस्त मायूस न होसिलसिले टूटते बनते ही रहे हैं आखिरतेरी पलकों पे सरअश्कों के सितारे कैसेतुझको गम है तेरी महबूब तुझे मिल न सकीऔर जो जीस्त तराशी थी तेरे ख्वाबों नेआज वो ठोस हक़ायक़ में कहीं टूट गयीतुझको मालूम है मैंने भी मुहब्बत की थीऔर अंजामे-मुहब्बत भी है मालूम तुझेकिसने पायी है भला जीस्त की तल्खी से निजातचारो-नाचार ये जहराब सभी पीते हैंजां-सपारी के फरेबिन्दा फसानों पे न जाकौन मरता है मुहब्बत में सभी जीते हैंवक़्त हर जख्म को हर गम को भुला देता हैवक़्त के साथ ये सदमा भी गुज़र जायेगाऔर ये बातें जो दुहराई हैं मैंने इस वक़्ततू भी एक रोज इन्हीं बातों को दुहरायेगादोस्त मायूस न हो.
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लाजवाब प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ...
वाह ... क्या बात है ... बेहद उम्दा ... इसे सांझा करने के आपका बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबहुत खूब सार्धक लाजबाब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमहाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ ! सादर
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
कृपया मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
अच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर