किराये का है ये मकां छोड़ते हैं ।
ऐ मालिक ,तेरा ये जहां छोड़ते हैं ।
ये क्यूँ कह दिया इश्क़ को छोड़ दें हम ,
लो हम जिस्म से अपनी जां छोड़ते हैं ।
तो ये जानिये बाग़ में कुछ कमी है ,
परिंदे अगर आशियां छोड़ते हैं ।
भले ही वो केंचुल बदल कर भी आएं ,
मगर लोग डंसना कहां छोड़ते हैं ।
किसी के मुबारक कदम लफ्ज़ बनकर ,
मेरी हर गज़ल में निशां छोड़ते हैं ।
कहां ऐसे बेटों को खुशियां मिलेंगी ,
जो रोती हुई अपनी मां छोड़ते हैं ।
न तू हीर है और न रांझा हूं मैं ही ,
चलो ,फिर भी एक दास्तां छोड़ते हैं ।
बड़े लोग भी बादलों की तरह ही ,
जमीं के लिए आस्मां छोड़ते हैं ।
उजाले जो दें उनकी कालिख न देखो ,
कि जलते दिये भी धुंआ छोड़ते हैं ।
- कुंअर बेचैन
ऐ मालिक ,तेरा ये जहां छोड़ते हैं ।
ये क्यूँ कह दिया इश्क़ को छोड़ दें हम ,
लो हम जिस्म से अपनी जां छोड़ते हैं ।
तो ये जानिये बाग़ में कुछ कमी है ,
परिंदे अगर आशियां छोड़ते हैं ।
भले ही वो केंचुल बदल कर भी आएं ,
मगर लोग डंसना कहां छोड़ते हैं ।
किसी के मुबारक कदम लफ्ज़ बनकर ,
मेरी हर गज़ल में निशां छोड़ते हैं ।
कहां ऐसे बेटों को खुशियां मिलेंगी ,
जो रोती हुई अपनी मां छोड़ते हैं ।
न तू हीर है और न रांझा हूं मैं ही ,
चलो ,फिर भी एक दास्तां छोड़ते हैं ।
बड़े लोग भी बादलों की तरह ही ,
जमीं के लिए आस्मां छोड़ते हैं ।
उजाले जो दें उनकी कालिख न देखो ,
कि जलते दिये भी धुंआ छोड़ते हैं ।
- कुंअर बेचैन
बढ़िया प्रस्तुति है आदरेया-
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