टूटी है मेरी नींद मगर, तुमको इससे क्या
बजते रहें हवाओं से दर, तुमको इससे क्या
बजते रहें हवाओं से दर, तुमको इससे क्या
तुम मौज-मौज मिस्ल-ए-सबा घूमते फिरो
कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या
कट जाएँ मेरी सोच के पर, तुमको इससे क्या
औरों के हाथ थामो, उन्हें रास्ता दिखाओ
मैं भूल जाऊँ अपना ही घर, तुमको इससे क्या
मैं भूल जाऊँ अपना ही घर, तुमको इससे क्या
अब्रे-गुरेज़-पा को बरसने से क्या ग़रज़
सीप में बन न पाए गुहर, तुमको इससे क्या
सीप में बन न पाए गुहर, तुमको इससे क्या
तुमने तो थक के दश्त में ख़ेमे लगा लिए
तन्हा कटे किसी का सफ़र, तुमको इससे क्या...।
तन्हा कटे किसी का सफ़र, तुमको इससे क्या...।
-परवीन शाकिर
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteनमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 17 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1035 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
लाजवाब रचना...
ReplyDeleteवाह!!!