Thursday, March 10, 2011

"जो था नहीं है ,जो है न होगा "

जो था नहीं है ,जो है न होगा ,
           यही है एक हर्फ़े-मुजरिमाना |
करीबतर है  नमूद  जिसकी 
           उसी का मुशताक़ है ज़माना ||
मेरी सुराही से क़तरा-क़तरा
           नए  हवादिस  टपक  रहे  हैं  |
मैं अपनी तस्बीहे-रोज़ो-शब का 
           शुमार करता हूं दाना - दाना ||
हर एक से आशना हूं लेकिन 
           जुदा - जुदा रस्मो - राह मेरी |
किसीका राकिब किसी का मुरकिब 
           किसी को इबरत का ताज़ियाना ||
न था अगर तू शरीक़े-महफ़िल ,
           कुसूर  मेरा  है  या   कि  तेरा  ?
मेरा तरीक़ा नहीं कि रख लूं 
           किसी की खातिर मये - शबाना ||
हवायें उनकी , फ़ज़ाए उनकी ,
            समन्दर  उनके  जहाज़  उनके |
गिरह भंवर की खुले तो क्योंकर ,
           भंवर   है    तक़दीर  का  बहाना ||
जहाने - नौ हो रहा है  पैदा 
            वो  आलमे - पीर  मर  रहा  है  |
जिसे फिरंगी मुक़ाबिरों ने 
            बना  दिया  है   क़मारखाना  ||
हवा है गो तेज़-ओ-तुंद लेकिन 
            चिराग़  अपना  जला  रहा  है |
वो मर्दे-दरवेश जिसको हक़ ने 
            दिए  हैं  अंदाज़े - खुस्रुवाना  ||

         साभार : इक़बाल
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तसबीहे-रोज़ो-शब = दिन-रात की माला 
शुमार = गणना 
आशना = परिचित 
राकिब =सवार 
मुरकिब =सवारी 
ताज़ियाना =कोड़ा 
ज़हाने-नौ = नया संसार 
आलमे-पीर =पुराना ज़माना 
मुक़ाबिरों ने =जुएबाज़ों ने 
क़मारखाना =जुआखाना 
मर्दे-दरवेश =साधू
हक़ =भगवान 
अंदाज़े-खुस्रुआना =बादशाहों के अंदाज़ 

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