Saturday, October 27, 2012

बताता जा रे अभिमानी ! ....- महादेवी वर्मा

बताता जा रे अभिमानी !

कण-कण उर्वर करते लोचन 
स्पंदन  भर  देता  सूनापन 
जग का धन मेरा दुःख निर्धन ;
तेरे वैभव की भिक्षुक या 
कहलाऊँ रानी !
बताता जा रे अभिमानी !

दीपक सा जलता अन्तस्तल 
संचित कर आँसू के बादल 
लिपटा है इससे प्रलयानिल ;
क्या यह दीप जलेगा तुझसे 
भर हिम का पानी ?
बताता जा रे अभिमानी !

चाहा था तुझमें मिटना भर 
दे डाला बनना मिट - मिटकर 
यह अभिशाप दिया है या वर ;
पहली मिलन कथा हूँ या मैं 
चिर - विरह कहानी ! 
बताता जा रे अभिमानी !
           - महादेवी वर्मा 

2 comments:

  1. धन्यवाद आपको .

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  2. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....

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