मेरी बंद मुठियाँ देखकर
जिस-जिस ने मुझसे पूछा,
"इनमें क्या है ?"
मैंने ईमानदारी से बताया ,
"इनमें क्या है ?
इनमें कदम्ब का फूल है। "
और लोगों ने इस पर
सहज विश्वास कर लिया।
वो तो जब
मेरी मुट्ठियों से
रक्त कि बूंदे चूने लगीं
तब लोगों ने मुझे अविश्वास कि नज़रों से घूरा ,
मुझसे कहा ,
"मुट्ठियाँ तो खोलो। "
और जब मैंने मुट्ठियाँ खोलीं
तो उनमें
कंटकीला धतूरे का फल निकला !
मैं शरमाया ,
मेरा झूठ पकड़ा गया ,
मुझे अपने पर आश्चर्य हुआ ,
क्यूंकि मैंने अपनी आखें खोलकर
कदम्ब का फूल अपनी मुट्ठियों में लिया था।
शायद मैं अपनी भावातिशयता में
काँटे को फूल समझा ,
पर काँटा , काँटा ही कैसे रह गया ,
फूल क्यूँ नहीं नहीं बना ,
उसने तो एक कवि का रक्त पिया था। ..... हरिवंश राय बच्चन
जिस-जिस ने मुझसे पूछा,
"इनमें क्या है ?"
मैंने ईमानदारी से बताया ,
"इनमें क्या है ?
इनमें कदम्ब का फूल है। "
और लोगों ने इस पर
सहज विश्वास कर लिया।
वो तो जब
मेरी मुट्ठियों से
रक्त कि बूंदे चूने लगीं
तब लोगों ने मुझे अविश्वास कि नज़रों से घूरा ,
मुझसे कहा ,
"मुट्ठियाँ तो खोलो। "
और जब मैंने मुट्ठियाँ खोलीं
तो उनमें
कंटकीला धतूरे का फल निकला !
मैं शरमाया ,
मेरा झूठ पकड़ा गया ,
मुझे अपने पर आश्चर्य हुआ ,
क्यूंकि मैंने अपनी आखें खोलकर
कदम्ब का फूल अपनी मुट्ठियों में लिया था।
शायद मैं अपनी भावातिशयता में
काँटे को फूल समझा ,
पर काँटा , काँटा ही कैसे रह गया ,
फूल क्यूँ नहीं नहीं बना ,
उसने तो एक कवि का रक्त पिया था। ..... हरिवंश राय बच्चन
बहुत अच्छी रचना है आपके संकलन में |
ReplyDeleteआशा