कबहुँ नैन हँसे ,
कबहुँ नैन के बीच ,
हँसे कजरा ।
कबहुँ टिकुली सजै ,
कबहुँ बेनी सजै ,
कबहुँ बेनी के बीच ,
सजै गजरा ।
कबहुँ चहक उठै ,
कबहुँ महक उठै ,
लगै खेलत जैसे,
बिजुरी औ बदरा ।
कबहुँ कसम धरें ,
कबहुँ कसम धरावै ,
कबहूँ रूठें तौ ,
कहुं लागै न जियरा ।
उन्है निहार निहार ,
हम निढाल भएन ,
अब केहि विधि ,.
अरे दी...प्यार तो इन सब के बिना भी जताया जा सकता है न :p बहुत ही सुंदर प्यार भरी प्यारी सी रचना ...:))
ReplyDeleteबहुत अच्छा गीत।
ReplyDeleteचकाचक !
ReplyDeleteमन में सब सुख पाऊँ, कैसे प्यार जताऊँ
ReplyDeleteमन को भायें, मन की बातें,
कैसे उलझायीं हैं रातें।
bahut sundar geet ...!!
ReplyDeleteवाह! अति सुंदर।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteक्या बात है...सुन्दर गीत.....
ReplyDeleteप्यार की कोई भी परिभाषा नहीं है
मन के भावों की कोई भाषा नहीं है |
अति सुन्दर प्रीत की गीत !
ReplyDeleteनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
एकदम क्लासिकल अन्दाज़ है... मनभावन!!
ReplyDeleteसुकोमल सी अभिव्यक्ति रस भरी !!
ReplyDeleteकल 11/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत सुंदर ! बहुत प्यारी रचना !
ReplyDeleteवाह वाह...
ReplyDeleteबहुत ही प्यारा और बहुत ही सुन्दर गीत...
:-)
http://mauryareena.blogspot.in/
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति....