सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी
उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
आख़िर कोई तक़रीब - ए - मुलाक़ात बनेगी
ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें
ऐ इश्क़ ! हमारी न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा - ए - हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी
ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी
- जाँ निसार अख़्तर
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी
उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
आख़िर कोई तक़रीब - ए - मुलाक़ात बनेगी
ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें
ऐ इश्क़ ! हमारी न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा - ए - हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी
ये क्या के बढ़ते चलो बढ़ते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी
- जाँ निसार अख़्तर
"ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें
ReplyDeleteऐ इश्क़ ! हमारी न तेरे साथ बनेगी"
क्या बात है ... बहुत खूब |
वैसे आज कैफ़ी आज़मी साहब की ९५ वीं जयंती है ...
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