Tuesday, January 14, 2014

जाँ निसार अख़्तर ..... जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी

सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी 
तुम आये तो इस रात की औक़ात बनेगी 

उन से यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे 
आख़िर कोई तक़रीब - ए - मुलाक़ात बनेगी 

ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें 
ऐ  इश्क़ !  हमारी  न  तेरे  साथ  बनेगी 

हैरत कदा - ए - हुस्न कहाँ है अभी दुनिया 
कुछ और निखर ले तो तिलिस्मात बनेगी

ये  क्या  के  बढ़ते चलो  बढ़ते  चलो आगे
जब  बैठ  के  सोचेंगे  तो  कुछ बात बनेगी

                                   - जाँ निसार अख़्तर 

2 comments:

  1. "ये हम से न होगा कि किसी एक को चाहें
    ऐ इश्क़ ! हमारी न तेरे साथ बनेगी"

    क्या बात है ... बहुत खूब |

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    1. वैसे आज कैफ़ी आज़मी साहब की ९५ वीं जयंती है ...

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