शुमार थे कभी उनके, रानाई-ए-ख़यालों में
अब देखते हैं ख़ुद को हम, तारीख़ के हवालों में
गुज़री बड़ी मुश्किल से, कल रात जो गुज़री है
टीस भी थी इंतहाँ, तेरे दिए हुए छालों में
बातों का सिलसिला था, निकली बहस की नोकें
फिर उलझते गए हम, कुछ बेतुके सवालों में
सागर का क्या क़सूर, वो चुपचाप ही पड़ा था
उसको डुबो दिया मिलके, चंद मौज के उछालो ने
हूँ गूंगी मैं तो क्या 'अदा', इल्ज़ाम गाली का है
परेशान कर दिया है, इस वकील के सवालों ने
कुछ होंठ सूखे हुए थे, और थे कुछ प्यासे हलक
पर गुम गईं कई ज़िंदगियाँ, साक़ी तेरे हालों में
- 'अदा'
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रानाई-ए-ख़यालों=कोमल अहसास
साक़ी=शराब बाँटने वाली
हाला=शराब की प्याली
वाह, बहुत सुन्दर..
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