Monday, January 17, 2011

"शिक़स्त"

अपने सीने से लगाए हुए उम्मीद की लाश
मुद्दतों जीस्त   को नाशाद   किया   है   मैने ।
तूने तो एक ही सदमे से किया था दो-चार,
दिल को हर तरह से बर्बाद किया है मैंने ।
जब भी राहों में नज़र आए हरीरी मलबूस,
सर्द आहों में तुझे   याद   किया   है   मैने ।।


और अब जबकि मेरी रूह की पहनाई में,
एक सुनसान -सी मग़्मूम घटा छाई है ।
तू दमकते हुए आरिज़ की शुआएं लेकर ,
गुलशुदा शम्मए जलाने को चलीं आई है॥


मेरी महबूब , ये हंगामा- ए -  तजदीदे -  वफ़ा
मेरी अफ़सुर्दा   जवानी के   लिए   रास   नहीं  ।
मैने जो फ़ूल चुने   थे तेरे   क़दमों   के   लिए,
उनका धुंधला-सा-तसव्वुर भी मेरे पास नहीं॥


एक यख़बस्ता उदासी है दिलो-जां पे मुहीत,
अब मेरी रूह में बाकी है न उम्मीद न जोश।
रह गया दब के गिरांबार सलासिल के तले ,
मेरी दरमांदा जवानी की उमंगो का खरोश ॥


रेगज़ारों में बगूलों के सिवा   कुछ भी   नहीं;
साया -ए -अब्रे - गुरेज़ां से मुझे क्या लेना ?
बुझ चुके हैं मेरे सीने में मुहब्बत के कंवल,
अब तेरे हुस्ने - पशेमां से मुझे क्या लेना ॥


तेरे आरिज़   पे   ये   ढ़लके   हुए सीमीं आंसू ,
मेरी अफ़सुर्दगी-ए ग़म का मुदावा तो नहीं।
तेरी महजूब   निगाहों का पयामे - तजदीद,
इक तलाफ़ी ही सही,मेरी तमन्ना तो नहीं॥


         साभार :  साहिर लुधियानवी

3 comments:

  1. sahir sahab ki khoobsurat gazal se mulakat karane ke liye shukriya kuchh urdu ke shabd main samajh nahi payi .please kathhin shabdon ke hindi shabd bhi post ke neeche likh diya kijiye isse mujh jaise urdu ke kam jankaron ka bada bhala hoga .aabhar .
    [http://shikhakaushik666.blogspot.com]

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  2. please remove word verification .it makes easiar to give comment .

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  3. भविष्य में ध्यान रखूँगी ।सुझाव के लिये धन्यवाद !

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