Saturday, March 12, 2011

" ताज "

हाय ! मृत्यु का ऐसा अमर ,अपार्थिव पूजन ?
जब विषण्ण, निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन !
संग - सौध में  हो  श्रृंगार  मरण  का  शोभन ,
नग्न , क्षुधातुर  वास विहीन रहें जीवित जन ?

मानव ! ऐसी भी विरक्ति क्या जीवन के प्रति ?
आत्मा का अपमान ,प्रेत औ  छाया से रति !!
प्रेम अर्चना यही , करें  हम  मरण  को  वरण ?
स्थापित कर कंकाल ,भरे  जीवन का प्रांगण ?

शव को  दें   हम  रूप , रंग , आदर  मानव  का
मानव को हम कुत्सित चित्र  बना  दें शव का ?
गत  युग  के  मृत  आदर्शों  के  ताज  मनोहर 
मानव  के  मोहान्ध  ह्रदय  में  किए  हुए  घर ,

भूल  गए  हम  जीवन  का  सन्देश   अनश्वर ,
मृतकों  के  हैं  मृतक , जीवितों  का  है  ईश्वर ! 

           साभार : सुमित्रानंदन पन्त  

3 comments:

  1. सुन्दर प्रस्तुति ....अच्छा चयन

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  2. भूल गए हम जीवन का सन्देश अनश्वर ,
    मृतकों के हैं मृतक , जीवितों का है ईश्वर !

    बहुत मर्मस्पर्शी..बहुत सुन्दर

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