Thursday, August 4, 2011

इबादत ........ .

इबादत  करते  हैं जो  लोग जन्नत  की तमन्ना में 
इबादत तो  नहीं  है  इक  तरह  की  वो तिजारत है 

जो डर कर  नारे -  दोज़ख़ से खुदा  का नाम लेते हैं 
इबादत क्या वो ख़ाली बुजदिलाना एक ख़िदमत है 

मगर जब शुक्रे-नेमत में जबीं झुकती  है बन्दे की 
वो  सच्ची  बन्दगी  है , इक  शरीफ़ाना  इताअत है 

कुचल  दे  हसरतों  को  बेनियाज़े  - मुद्दुआ  हो  जा 
ख़ुदी को६ झाड़  दे  दामन से मरदे - बाखुदा हो  जा 

उठा  लेती  हैं  लहरें  तहनशीं  होता  है जब   कोई
उभरना है  तो  ग़र्के - मौजे -  बहरे -  फ़ना  हो  जा९  

                                                    -जोश मलीहाबादी  
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१ :नरक की आग से
२ :धन्यवाद स्वरूप 
३ :माथा 
४:आराधना 
५ :फल प्राप्ति के प्रति विमुख 
६ :अहं को 
७ :ख़ुदा का बन्दा 
८ :डूब जाता है 
९ :अनस्तित्व रूपी सागर की लहरों में डूब जा  
इबादत 
  

4 comments:

  1. वाह जी,
    क्या बात है

    कुचल दे हसरतों को बेनियाज़े - मुद्दुआ५ हो जा
    ख़ुदी को६ झाड़ दे दामन से मरदे - बाखुदा७ हो जा

    बहुत सुंदर

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  2. waah.... bhaut hi sundar prstuti...

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  3. एक बहुत अच्छी रचना पढवाई आपने।

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  4. सच्ची इबाबत का सन्देश देती अर्थपूर्ण रचना..

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