Saturday, April 23, 2011

हुए क्यों उस पे आशिक़ ........

हुए  क्यों  उस  पे आशिक़ हम अभी से 
लगाया जी  को  नाहक  ग़म  अभी  से 

दिला रब्त१ उससे रखना कम अभी से 
जता  देते   हैं  तुझ  को  हम   अभी  से 

तिरे बीमारे-ग़म के हैं जो ग़म - ख्वार२
बरसता   उन  पे  है  मातम   अभी  से 

तुम्हारा  मुझ  को  पासे - आबरू३  था
वगर्ना   अश्क़    थम  जाते  अभी   से 

मरा  जाना  मुझे   ग़ैरों   ने   ऐ   ज़ौक़ 
कि  फ़िरते  हैं  खुशो-खुर्रम४  अभी  से 
          साभार :ज़ौक़ 
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१-सम्बन्ध 
२सहाभूतिकर्ता 
३इज़्ज़त का ख्याल 
४-अत्यन्त प्रसन्न  

Friday, April 8, 2011

तुम दीवाली बन कर जग का .......

तुम दीवाली बन कर  जग का तम दूर करो ,
मैं  होली  बन कर बिछड़े  ह्रदय मिलाऊंगा !

सूनी  है  मांग  निशा  की   चन्दा  उगा  नहीं 
हर   द्वार   पड़ा   खामोश  सवेरा  रूठ   गया ,
है गगन विकल,आ गया सितारों का पतझर 
तम  ऐसा  है  कि  उजाले  का  दिल टूट गया ,
तुम जाओ घर-घर दीपक बन कर मुस्काओ 
मैं भाल - भाल  पर  कुंकुम बन लग जाऊंगा !

तुम दीवाली बन कर जग का  तम  दूर करो ,
मै  होली  बन  कर  बिछड़े ह्रदय मिलाऊंगा !!

कर रहा नृत्य विध्वंस ,सृजन के थके चरण ,
संस्कृति  की  इति  हो  रही , क्रुद्ध  हैं  दुर्वासा
बिक   रही  द्रौपदी  नग्न  खड़ी  चौराहे   पर 
पढ़  रहा  किन्तु  साहित्य सितारों की भाषा ,
तुम  गा  कर  दीपक  राग  जगा  दो मुर्दों को 
मैं  जीवित  को  जीने  का   अर्थ   बताऊंगा !

तुम दीवाली बन  कर जग का  तम दूर करो 
मैं होली बन कर बिछड़े ह्रदय  मिलाऊंगा  !!

इस  कदर  बढ़  रही  है   बेबसी  बहारों   की 
फूलों  को  मुस्काना  तक  मना  हो  गया  है ,
इस  तरह  हो  रही  पशुता  की   पशु - क्रीड़ा
लगता  है   दुनिया  से  इंसान  खो  गया   है ,
तुम    जाओ   भटकों   को   रास्ता   बताओ 
मैं   इतिहासों   को  नए  सफे   दे   जाऊंगा !

तुम दीवाली बन कर जग का तम दूर करो 
मैं होली बन कर बिछड़े ह्रदय मिलाऊंगा !!
                                               साभार : नीरज 

Saturday, April 2, 2011

शिकवे के नाम से ,बेमेहर खफ़ा होता है ........

शिकवे  के   नाम   से ,  बेमेहर  ख़फ़ा   होता   है 
यह भी मत कह,कि जो कहिये,तो गिला होता है 
पुर   हूं  मैं  शिकवे  से  यों , राग  से  जैसे  बाजा 
इक  ज़रा  छेडिये , फिर  देखिये , क्या  होता  है 
गो   समझता  नहीं , पर   हुस्ने - तलाफ़ी  देखो 
शिकव - ए - जौर  से , सरगर्मे - जफ़ा  होता  है 
इश्क़ की राह में , है चर्खे - मकौकब की वो चाल 
सुस्त   रौ   जैसे   कोई   आबला   पा   होता   है 
क्यों  न  ठहरे  हदफे - नावके - बेदाद , कि  हम 
आप   उठा  लाते   हैं , गर  तीर  खता  होता   है 
खूब था , पहले से होते जो हम अपने  बदख्वाह
कि   भला   चाहते    हैं    और   बुरा   होता    है 
                                            साभार :ग़ालिब 
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बेमेहर =निर्मोही 
हुस्ने-तलाफ़ी =सुन्दर विधि से क्षतिपूर्ती 
शिकव-ए-जौर =अत्याचार की शिकायत 
सरगर्मे -जफ़ा =अत्याचार में व्यस्त 
चर्खे -मकौकब =तारों भरा गगन 
हदफे-नावके-बेदाद =ज़ुल्म के तीर का निशाना