हुए क्यों उस पे आशिक़ हम अभी से
लगाया जी को नाहक ग़म अभी से
दिला रब्त१ उससे रखना कम अभी से
जता देते हैं तुझ को हम अभी से
तिरे बीमारे-ग़म के हैं जो ग़म - ख्वार२
बरसता उन पे है मातम अभी से
तुम्हारा मुझ को पासे - आबरू३ था
वगर्ना अश्क़ थम जाते अभी से
मरा जाना मुझे ग़ैरों ने ऐ ज़ौक़
कि फ़िरते हैं खुशो-खुर्रम४ अभी से
साभार :ज़ौक़
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१-सम्बन्ध
२सहाभूतिकर्ता
३इज़्ज़त का ख्याल
४-अत्यन्त प्रसन्न
सुन्दर रचना।
ReplyDeleteits warning..........but very beautiful
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteआशा
"तुम्हारा मुझ को पासे - आबरू था
ReplyDeleteवगर्ना अश्क़ थम जाते अभी से "
किसी के लिखे ज़ज्बात लेकिन
कोई भी समय हो सभी के लिए
सही उतर जाते हैं...!!
शैली हिंदुस्तानी जबां की हो तो आनंद द्विगुणित हो जाए।
ReplyDeletenamaskar ji
ReplyDeleteblog par kafi dino se nahi aa paya mafi chahata hoon
मुक़र्रर ......मुक़र्रर
ReplyDeleteमन को छू गयी यह रचना ....हार्दिक शुभकामनायें आपको !!
ReplyDeleteतुम्हारा मुझ को पासे - आबरू था
ReplyDeleteवगर्ना अश्क़ थम जाते अभी से "
bahut khoob...aankh gar nam ho to siyahi ho jati hai aur dil kalam ho uthta.
bahut achchi....
ReplyDeleteनिवेदिता जी
ReplyDeleteसादर अभिवादन !
संकलन में आप द्वारा प्रस्तुत रचनाओं के लिए आभार और दिली मुबारकबाद !
ज़ौक़ की प्रस्तुत ग़ज़ल भी बेहद पसंद आई …
तुम्हारा मुझ को पासे - आबरू था
वगर्ना अश्क़ जाते थम अभी से
मेरी ताज़ा पोस्ट पर इसी बह्र में ग़ज़ल लगी है … लेकिन एकदम अलग मिज़ाज की ; समय मिले तो नज़रे-इनायत कर लीजिएगा …
हार्दिक शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
ज़ौक़ साहब को पढ़वाने के लिए शुक्रिया.
ReplyDeleteबढिया है। बहुत बढिया
ReplyDeleteनिवेदिता जी, बहुत खूब लिखती हैं आप। बधाई।
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
बहुत खूब । जौंक जी की यह गज़ल पढवाने का आभार ।
ReplyDeleteकिधर से शुरू करून, किधर से ख़तम करून |
ReplyDeleteजिन्दगी का फ़साना, कैसे तेरी नज़र करून |
है ख्याल जिन्दगी का, कैसे मुनव्वर करून |
मगरिब के जानिब खड़ा, कैसे तसव्वुर करून |
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteजौंक साहब का अंदाज ही निराला है.
मन को छूने वाली सुन्दर प्रस्तुति ..मेरे ब्लांग में आने के लिये आभार..
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