Saturday, April 23, 2011

हुए क्यों उस पे आशिक़ ........

हुए  क्यों  उस  पे आशिक़ हम अभी से 
लगाया जी  को  नाहक  ग़म  अभी  से 

दिला रब्त१ उससे रखना कम अभी से 
जता  देते   हैं  तुझ  को  हम   अभी  से 

तिरे बीमारे-ग़म के हैं जो ग़म - ख्वार२
बरसता   उन  पे  है  मातम   अभी  से 

तुम्हारा  मुझ  को  पासे - आबरू३  था
वगर्ना   अश्क़    थम  जाते  अभी   से 

मरा  जाना  मुझे   ग़ैरों   ने   ऐ   ज़ौक़ 
कि  फ़िरते  हैं  खुशो-खुर्रम४  अभी  से 
          साभार :ज़ौक़ 
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१-सम्बन्ध 
२सहाभूतिकर्ता 
३इज़्ज़त का ख्याल 
४-अत्यन्त प्रसन्न  

18 comments:

  1. सुन्दर रचना।

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  2. its warning..........but very beautiful

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  3. अच्छी प्रस्तुति
    आशा

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  4. "तुम्हारा मुझ को पासे - आबरू था
    वगर्ना अश्क़ थम जाते अभी से "

    किसी के लिखे ज़ज्बात लेकिन
    कोई भी समय हो सभी के लिए
    सही उतर जाते हैं...!!

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  5. शैली हिंदुस्तानी जबां की हो तो आनंद द्विगुणित हो जाए।

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  6. namaskar ji
    blog par kafi dino se nahi aa paya mafi chahata hoon

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  7. मुक़र्रर ......मुक़र्रर

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  8. मन को छू गयी यह रचना ....हार्दिक शुभकामनायें आपको !!

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  9. तुम्हारा मुझ को पासे - आबरू था
    वगर्ना अश्क़ थम जाते अभी से "

    bahut khoob...aankh gar nam ho to siyahi ho jati hai aur dil kalam ho uthta.

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  10. निवेदिता जी
    सादर अभिवादन !

    संकलन में आप द्वारा प्रस्तुत रचनाओं के लिए आभार और दिली मुबारकबाद !
    ज़ौक़ की प्रस्तुत ग़ज़ल भी बेहद पसंद आई …
    तुम्हारा मुझ को पासे - आबरू था
    वगर्ना अश्क़ जाते थम अभी से


    मेरी ताज़ा पोस्ट पर इसी बह्र में ग़ज़ल लगी है … लेकिन एकदम अलग मिज़ाज की ; समय मिले तो नज़रे-इनायत कर लीजिएगा …
    हार्दिक शुभकामनाएं !

    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  11. ज़ौक़ साहब को पढ़वाने के लिए शुक्रिया.

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  12. बहुत खूब । जौंक जी की यह गज़ल पढवाने का आभार ।

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  13. किधर से शुरू करून, किधर से ख़तम करून |
    जिन्दगी का फ़साना, कैसे तेरी नज़र करून |
    है ख्याल जिन्दगी का, कैसे मुनव्वर करून |
    मगरिब के जानिब खड़ा, कैसे तसव्वुर करून |

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  14. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    जौंक साहब का अंदाज ही निराला है.

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  15. मन को छूने वाली सुन्दर प्रस्तुति ..मेरे ब्लांग में आने के लिये आभार..

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