इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में
इबादत तो नहीं है इक तरह की वो तिजारत है
जो डर कर नारे - दोज़ख़१ से खुदा का नाम लेते हैं
इबादत क्या वो ख़ाली बुजदिलाना एक ख़िदमत है
मगर जब शुक्रे-नेमत२ में जबीं३ झुकती है बन्दे की
वो सच्ची बन्दगी है , इक शरीफ़ाना इताअत४ है
कुचल दे हसरतों को बेनियाज़े - मुद्दुआ५ हो जा
ख़ुदी को६ झाड़ दे दामन से मरदे - बाखुदा७ हो जा
उठा लेती हैं लहरें तहनशीं होता है८ जब कोई
उभरना है तो ग़र्के - मौजे - बहरे - फ़ना हो जा९
-जोश मलीहाबादी
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१ :नरक की आग से
२ :धन्यवाद स्वरूप
३ :माथा
४:आराधना
५ :फल प्राप्ति के प्रति विमुख
६ :अहं को
७ :ख़ुदा का बन्दा
८ :डूब जाता है
९ :अनस्तित्व रूपी सागर की लहरों में डूब जा
इबादत
वाह जी,
ReplyDeleteक्या बात है
कुचल दे हसरतों को बेनियाज़े - मुद्दुआ५ हो जा
ख़ुदी को६ झाड़ दे दामन से मरदे - बाखुदा७ हो जा
बहुत सुंदर
waah.... bhaut hi sundar prstuti...
ReplyDeleteएक बहुत अच्छी रचना पढवाई आपने।
ReplyDeleteसच्ची इबाबत का सन्देश देती अर्थपूर्ण रचना..
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