मर के भी कब तक निगाहें -शौक़ को रुसवा करें
ज़िन्दगी तुझ को कहाँ फैंक आयें ,आखिर क्या करें
ज़ख्मे-दिल मुमकिन नहीं तो चश्मे-दिल ही वा करें१
वो हमें देखें न देखें हम उन्हें देखा करें
ऐ मैं कुर्बां मिल गया अर्जे-मोहब्बत का सिला
हाँ उसी अंदाज़ से कह दो ,तो फिर हम क्या करें
देखिये क्या शोर उठता है हरीमे - नाज़ से२
सामने आईना रख कर ख़ुद को इक सिज्दा करें
हाए ये मजबूरियां , महरूमियां , नाकामियां
इश्क़ आखिर इश्क़ है ,तुम क्या करो ,हम क्या करें
- जिगर मुरादाबादी
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१:मन के नेत्र ही खोलें
२:प्रेयसी के घर की चारदीवारी से
bhaut hi acchi gazal...
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