दिये से मिटेगा न मन का अन्धेरा
धरा को उठाओ गगन को झुकाओ !!
बहुत बार आई-गई यह दिवाली
मगर तम जहाँ था वहीं पर खड़ा है ,
बहुत बार लौ जल-बुझी पर अभी तक
कफ़न रात का हर चमन पर पड़ा है ,
न फिर सूर्य रूठे ,न फिर स्वप्न टूटे
ऊषा को जगाओ ,निशा को सुलाओ !
दिये से मिटेगा न मन का अन्धेरा
धरा को उठाओ गगन को झुकाओ !!
सृजन-शान्ति के वास्ते है जरूरी
कि हर द्वार पर रौशनी गीत गाये
तभी मुक्ति का यज्ञ यह पूर्ण होगा ,
कि जब प्यार तलवार से जीत जाए ,
घृणा बढ़ रही है ,अमा चढ़ रही है
मनुज को जिलाओ ,दनुज को मिटाओ !
दिये से मिटेगा न मन का अन्धेरा
धरा को उठाओ गगन को झुकाओ !!
बड़े वेगमय पंख हैं रोशनी के
न वह बंद रहती किसी के भवन में ,
किया कैद जिसने उसे शक्ति-छल से
स्वयं उड़ गया वह धुआँ बन पवन में ,
न मेरा-तुम्हारा ,सभी का प्रहर यह
इसे भी बुलाओ उसे भी बुलाओ !
दिये से न मिटेगा न मन का अन्धेरा
धरा को उठाओ ,गगन को झुकाओ !!
- नीरज
सृजन-शान्ति के वास्ते है जरूरी
ReplyDeleteकि हर द्वार पर रौशनी गीत गाये
तभी मुक्ति का यज्ञ यह पूर्ण होगा ,
कि जब प्यार तलवार से जीत जाए ,
सामयिक आवाहन के लिए है इस रचना में ! शुभकामनायें आपको !
bhaut hi sundar abhivaykti...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक हेतु पढ़े आलेख-
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
अच्छी रचना
ReplyDeleteवाह सुंदर
ReplyDeleteNEERAJ JI KI TO BAAT HI KUCHH AUR HAI NAA.....
ReplyDeleteवाह ||
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना...
ReplyDeleteबड़े वेगमय पंख हैं रोशनी के
ReplyDeleteन वह बंद रहती किसी के भवन में ,
किया कैद जिसने उसे शक्ति-छल से
स्वयं उड़ गया वह धुआँ बन पवन में ,
sunder rachna ke liye aabhar..sunder bhavpurn prastuti