Saturday, October 8, 2011

हे वीणा वादिनी वर दे !


                 हे वीणा वादिनी वर दे !
मेरी एक कोरी कॉपी को तू कविताओं से भर दे ! 

अगर कहीं पर सम्मेलन में मेरे सुर छिड़ जायें ,
जनता की क्या बात ,लीडर भी भागे-भागे आयें ,
संयोजक झट झोली में ,नोटों की गड्डी भर दे !
                हे वीणा वादिनी वर दे !

मेरे गीतों को सुन कर , 'नीरज' भी  पानी भर जाये ,
'पुष्प'-वुष्प की गिनती क्या ,बेढ़ब सा ज्ञानी डर जाये ,
जो गुण है 'काका हाथरसी में' ,वह सब मुझमें जड़ दे !
                 हे वीणा वादिनी वर दे !

वीर रस की कविता सुनाकर ,पब्लिक में 'हुल्लड़' मचवाये ,
ऐसे  जूते  चलें  वहाँ   पर ,  संयोजक  भी  पिट  जाये ,
ऐटम  बम  जैसे  परमाणु  , मेरी  वीणा  में  धर   दे ! 
                 हे वीणा वादिनी वर दे !
                                             -हुल्लण मुरादाबादी 

6 comments:

  1. खूबसूरत प्रस्तुति ||
    बधाई ||

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  2. बहुत सुन्दर रचना.....!

    काश कि ये सच हो पाता....!!

    तो हम भी कुछ ऐसा ही लिखने की कोशिश करते..!!!

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  3. प्रभावशाली प्रस्तुति

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  4. निवेदिता जी हमने हुल्लड़ जी की रचनाएं कवी सम्मेलनों में सुनी हैं हँसते हँसते लोटपोट आज आप ने याद करा के ख़ुशी कर दिया ..
    आभार
    भ्रमर ५

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  5. वाह हुल्लड मुरादाबादी जी की गज़ब हास्य लिए लाजवाब रचना है ... शुक्रिया ...

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