हे वीणा वादिनी वर दे !
मेरी एक कोरी कॉपी को तू कविताओं से भर दे !
अगर कहीं पर सम्मेलन में मेरे सुर छिड़ जायें ,
जनता की क्या बात ,लीडर भी भागे-भागे आयें ,
संयोजक झट झोली में ,नोटों की गड्डी भर दे !
हे वीणा वादिनी वर दे !
मेरे गीतों को सुन कर , 'नीरज' भी पानी भर जाये ,
'पुष्प'-वुष्प की गिनती क्या ,बेढ़ब सा ज्ञानी डर जाये ,
जो गुण है 'काका हाथरसी में' ,वह सब मुझमें जड़ दे !
हे वीणा वादिनी वर दे !
वीर रस की कविता सुनाकर ,पब्लिक में 'हुल्लड़' मचवाये ,
ऐसे जूते चलें वहाँ पर , संयोजक भी पिट जाये ,
ऐटम बम जैसे परमाणु , मेरी वीणा में धर दे !
हे वीणा वादिनी वर दे !
-हुल्लण मुरादाबादी
खूबसूरत प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई ||
बहुत सुन्दर रचना.....!
ReplyDeleteकाश कि ये सच हो पाता....!!
तो हम भी कुछ ऐसा ही लिखने की कोशिश करते..!!!
प्रभावशाली प्रस्तुति
ReplyDeleteनिवेदिता जी हमने हुल्लड़ जी की रचनाएं कवी सम्मेलनों में सुनी हैं हँसते हँसते लोटपोट आज आप ने याद करा के ख़ुशी कर दिया ..
ReplyDeleteआभार
भ्रमर ५
pyari hai ye prarthna bhi.....
ReplyDeleteवाह हुल्लड मुरादाबादी जी की गज़ब हास्य लिए लाजवाब रचना है ... शुक्रिया ...
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