वो दिन है कौन सा कि सितम पर सितम नहीं
गर ये सितम है रोज़ तो इक रोज़ हम नहीं
ये दिल मुझे डुबो के रहेगा , कि सीने में
वो कौन सा है दाग़ जो गिर्दाबे - ग़म नहीं
अहले - सफ़ा का देखा न दामन किसी ने तर
गौहर है अपनी आब में ग़र्क और नम नहीं
गर आबे - दीद शर्बते - कौसर भी है तो क्या
जब तक कि उसमें चाशनी- ए- दर्दो -ग़म नहीं
जाता है आँखें बंद किए ज़ौक तू कहां
ये राहे - कू - ए - यार है राहे अदम नहीं
-ज़ौक
बढ़िया गज़ल....
ReplyDeleteवो दिन है कौन सा कि सितम पर सितम नहीं
ReplyDeleteगर ये सितम है रोज़ तो इक रोज़ हम नहीं.. bhaut khubsurat... happy diwali...
आपको गोवर्धन अथवा अन्नकूट पर्व की हार्दिक मंगल कामनाएं,
ReplyDeleteवाह. बहुत सुंदर
ReplyDeleteबेहतरीन शब्द, बहुत ही अच्छे।
ReplyDeleteमार्मिक गजल
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपका इंतजार रहेगा ।
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । बहुत ही अच्छी प्रस्तुति । मेर नए पोस्ट "उपेंद्र नाथ अश्क" पर आपकी सादर उपस्थिति प्रार्थनीय है । धन्यवाद ।
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