उसे हमने बहुत ढूँढा , न पाया
अगर पाया तो खोज अपना न पाया
मुक़द्दर ही पे गर सूदो - जियां(१) है
तो हमने कुछ यहाँ खोया न पाया
सुराग़े - उम्रे -रफ़्ता(२) हो तो क्योंकर
कहीं जिसका निशाने - पा(३) न पाया
कहे क्या हाए जख्मे - दिल हमारा
दहन(४) पाया ,लबे-गोया(५) न पाया
कभी तू , और कभी तेरा रहा गम
गरज़ खाली दिले - शैदा(६) न पाया
नज़ीर उसका कहां आलम में ऐ 'जौक'
कोई ऐसा न पाएगा , न पाया
-जौक
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१.=लाभ-हानि
२=बीती आयु का निशान
३=पदचिन्ह
४=मुँह
५=बोलने वाले होंठ
६=आसक्त मन
बहुत सुंदर नज्म ,बेहतरीन पोस्ट....बहुत खूब निवेदिता जी ,
ReplyDeletenew post...वाह रे मंहगाई...
बहुत दिनों से मेरे पोस्ट पर नही आई,..आइये स्वागत है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति निवेदिता जी.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग को क्यूँ भूले हुए हैं आप.
आपका दर्शन और सुवचन मेरे लिए बहुत प्रेरक होते हैं जी.
Wah ....prastuti ke liye sadar abhar.
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक एवं सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteवाह. मज़ा आ गया.
ReplyDeletebahut hi umda post!
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