मज़े जो मौत के आशिक बयां करते
मसीहो - खिज्र भी मरने की आर्ज़ू करते
अगर ये जानते चुन-चुन के हम को तोड़ेंगे
तो गुल कभी न तमन्ना- ए- रंगो-बू करते
समझ ये दारो-रसन ,तारो-सोज़न ऐ मंसूर
कि चाके - पर्दा हक़ीक़त का है रफ़ू करते
यकीं है सुब्हे-क़यामत को भी सुबूही-कश
उठेंगे ख़्वाब से साक़ी , सुबू - सुबू करते
-ज़ौक
अगर ये जानते चुन-चुन के हम को तोड़ेंगे
ReplyDeleteतो गुल कभी न तमन्ना- ए- रंगो-बू करते
bahut khoob.....!!