हम हैं और साया तीरे कूचे की दीवारों का
काम जन्नत में है क्या हम से गुनहगारों का
मोहतसिब दुश्मने-जां गरचे है मयख्वारों का
दीजै इक जाम तो है यार अभी यारों का
हाए वो आशिके-जांबाज़ कि इक मुद्दत तक
ह्द्फे - तीर१ तुझ से कमांदारों का
चर्ख पर२ बैठ रहा जान बचा कर ईसा
हो सका जब न मुदावा३ तेरे बीमारों का
बे-सियाही न चला काम कलम का ऐ 'ज़ौक'
रू-सियाही४ ,सरो-सामां है सियह्कारों५ का
-ज़ौक
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१ : लक्ष्य
२ :आकाश पर
३ :इलाज़
४ :बदनामी
५ :पापियों का
३ :इलाज़
४ :बदनामी
५ :पापियों का
NICE
ReplyDeleteआपके पोस्ट पर आना सार्थक हुआ । प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका आमंत्रण है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भाव...सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...
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