क्या आए तुम जो आए घड़ी दो घड़ी के बाद
सीने में सांस होगी अड़ी दो घड़ी के बाद
कोइ घड़ी अगर वो मुलाइम हुए तो क्या
कह बैठेंगे फिर एक कड़ी दो घड़ी के बाद
क्या रोका अपने गिरिये को हमने कि लग गई
फिर वो ही आंसुओं की झड़ी दो घड़ी के बाद
कल हमने उससे तर्के - मुलाक़ात की तो क्या
फिर उस बगैर कल न पड़ी दो घड़ी के बाद
गर दो घड़ी तक उसने न देखा इधर तो क्या
आख़िर हमीं से आँख लड़ी दो घड़ी के बाद
क्या जाने दो घड़ी वो रहे "ज़ौक" किस तरह
फिर तो न ठहरे पाँव घड़ी दो घड़ी के बाद
-ज़ौक
गर दो घड़ी तक उसने न देखा इधर तो क्या
ReplyDeleteआख़िर हमीं से आँख लड़ी दो घड़ी के बाद
..इतनी सुन्दर गज़ल पढवाने के लिये आभार..
यह घड़ी दो घड़ी बहुत भारी पड़ती हैं ... अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteकल हमने उससे तर्के - मुलाक़ात की तो क्या
ReplyDeleteफिर उस बगैर कल न पड़ी दो घड़ी के बाद
गर दो घड़ी तक उसने न देखा इधर तो क्या
आख़िर हमीं से आँख लड़ी दो घड़ी के बाद ....acchi prstuti... bhaut hi sundar...
वाह!
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