तुम मुझे दो एक अच्छी माँ, तुम्हें मैं एक अच्छा राष्ट्र दूँगा.
बात तो जिसने कही थी सच कही थी
पर भला वो भूल कैसे ये गया कि
पूत कितने ही सुने हैं कपूत लेकिन
माँ कुमाता हो, नहीं इतिहास कहता.
माँ कहा करते थे नदियों को,
और उनको पूजते थे
तब कहीं जाकर जने थे सभ्यता के पूत ऐसे
आज भी है साक्षी इतिहास जिनका.
पुस्तकों में था पढा हमने कि
दुनिया की पुरानी सभ्यताएँ
थीं फली फूली बढीं नदियों के तट पर.
याद कर लें हम
वो चाहे नील की हो सभ्यता या सिंधु घाटी की
गवाह उनके अभी भी हैं चुनौती आज की तकनीक को
चाहे पिरमिड मिस्र के हों
या हड़प्पा की वो गलियाँ, नालियाँ, हम्माम सारे.
माँ तो हम सब आज भी कहते हैं नदियों को
बड़े ही गर्व से जय बोलते हैं गंगा मईया की,
औ’ श्रद्धा से झुकाते सिर हैं अपना
जब गुज़रते हैं कभी जमुना के पुल से.
वक़्त किसके पास होता है मगर
कुछ पल ठहरकर झाँक ले जमुना के पानी में
था जिसको देखकर बिटिया ने मेरी पूछा मुझसे,
“डैड! ये इतना बड़ा नाला यहाँ पर कैसे आया?
कितना गंदा है चलो जल्दी यहाँ से!”
कितना गंदा है चलो जल्दी यहाँ से!”
कैसे मैं उसको ये बतलाऊँ कि इस नाले का पानी,
हम रखा करते थे पूजा में
छिडककर सिर पे, धोते पाप अपने,
काँप उट्ठा दिल उसी दिन
दुर्दशा को देखकर गंगा की, जमुना की.
आज की इस नस्ल को क्या ये नहीं मालूम,
नदियाँ हों जहाँ नाले से बदतर,
नदियाँ हों जहाँ नाले से बदतर,
जन्म लेती है निठारी सभ्यता,
जिसमें हैं कत्ले-आम और आतंक के साये.
उजडती आबरू, नरभक्षियों का राज!
मित्रों,
आपको मालूम हो उस शख्स का कोई पता
तो इस नगर का भी पता उसको बताना,
और कहना
आके बस इक बार ये ऐलान कर दे,
तुम मुझे दो एक अच्छी माँ
तुम्हें मैं एक अच्छा राष्ट्र दूंगा!
वंदे मातरम |
ReplyDeletebahut achchi lagi....
ReplyDeletepahli baar dekhi.....bahot khoobsurat sankalan hai,nivedita jee.
ReplyDeleteMain to khud nishabd hoon apni is rachna ke chayan par.. Varsh 2005 me jab main DELHI aaya tha tab ye kavita likhi thi Jamuna Ji ki durdasha par... Aaj bhi yah meri sabse pyari rachna hai..
ReplyDeleteNivedita Bahan! Mujhe aisa lag raha hai ki mere bachche ko kisi ne pyaar se gale lagaya hai.. AABHAAR!!
भैया ,संकलन को समृद्ध करने के लिए धन्यवाद :)
Deleteइस उत्कृष्ट रचना को साझा करने के लिये आभार आपका ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया .... इसको यही स्थान मिलना था ....
ReplyDeleteदी , बस एक छोटी सी कोशिश है अपनी पसंदीदा रचनाओं को सहेजने की :)
Deleteदी...बात तो एकदम सही लिखी गयी है मगर क्या आपको नहीं लगता कि नदियों की इस दुर्दशा के लिए कहीं न कहीं हम ही जिम्मेदार नहीं है ? जिस तरह बूंद बूंद करके सागर बनता है उसी तरह धीरे गंदगी बढ़ते बढ़ते आज यह नौबत आ गयी है
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