Saturday, January 4, 2014

गुलज़ार ....... एक शख़्स था बादा-ख़ार था

मेरा क्या था तेरे हिसाब में मेरा साँस साँस उधार था
जो गुज़र गया वो तो वक़्त था, जो बचा रहा वो ग़ुबार था


तेरी आरज़ू में उड़े तो थे, चन्द ख़ुश्क पत्ते चनार के
जो हवा के दोश से गिर पड़ा, उनमें एक ये ख़ाकसार था


वो उदास उदास इक शाम थी, एक चेहरा था इक चराग़ था
और कुछ नहीं था ज़मीन पर, एक आसमाँ का ग़ुबार था


बड़े सूफ़ियों से ख़याल थे, और बयाँ भी उसका कमाल था
कहा मैंने कब के वही था वो, एक शख़्स था बादा-ख़ार था
                                                                                
                                                    ...... गुलज़ार 

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