घर जब बना लिया तिरे दर पर, कहे बिग़ैर
जानेगा अब तू न मिरा घर कहे बिग़ैर
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़ते सुख़न
जानूं किसी के दिल की मैं क्योंकर, कहे बिगै़र
काम उससे आ पड़ा है, कि जिस का जहान में
लेवे न कोई नाम, सितमगर कहे बिग़ैर
जी ही में कुछ नहीं है हमारे वगरना हम
सर जाये या रहे, न रहें पर कहे बिगै़र
छोड़ूंगा मैं न, उस बूते- काफ़िर का पूजना
छोड़े न खल्क़ गो मुझे काफिर कहे बिगैर
मक़सद है नाजो़-गम्जा, वले गुफ्तगू में, काम
चलता नहीं है दश्न-ओ-खंजर कहे बिग़ैर
हरचंद, हो मुशाहिद-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
बनती नहीं है, बादा-ओ-सागर कहे बिगैर
बहरा हूं मैं, तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात
सुनता नहीं हूं बात, मुकर्रर कहे बिग़ैर
‘ग़ालिब’, न कर हुजूर में तू बार-बार अर्ज़
जा़हिर है तेरा हाल सब उन पर, कहे बिग़ैर ................ मिर्ज़ा ग़ालिब
..................................................................................................................................................................
सुख़नः- वाक शक्ति
मुशाहिद-ए-हक़ः- सत्य या परमात्मा
इल्तिफ़ातः- कृपा
मुकर्ररः- दुआ
जानेगा अब तू न मिरा घर कहे बिग़ैर
कहते हैं, जब रही न मुझे ताक़ते सुख़न
जानूं किसी के दिल की मैं क्योंकर, कहे बिगै़र
काम उससे आ पड़ा है, कि जिस का जहान में
लेवे न कोई नाम, सितमगर कहे बिग़ैर
जी ही में कुछ नहीं है हमारे वगरना हम
सर जाये या रहे, न रहें पर कहे बिगै़र
छोड़ूंगा मैं न, उस बूते- काफ़िर का पूजना
छोड़े न खल्क़ गो मुझे काफिर कहे बिगैर
मक़सद है नाजो़-गम्जा, वले गुफ्तगू में, काम
चलता नहीं है दश्न-ओ-खंजर कहे बिग़ैर
हरचंद, हो मुशाहिद-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
बनती नहीं है, बादा-ओ-सागर कहे बिगैर
बहरा हूं मैं, तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात
सुनता नहीं हूं बात, मुकर्रर कहे बिग़ैर
‘ग़ालिब’, न कर हुजूर में तू बार-बार अर्ज़
जा़हिर है तेरा हाल सब उन पर, कहे बिग़ैर ................ मिर्ज़ा ग़ालिब
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सुख़नः- वाक शक्ति
मुशाहिद-ए-हक़ः- सत्य या परमात्मा
इल्तिफ़ातः- कृपा
मुकर्ररः- दुआ
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