तुम .....
प्रकृति की अनुपम रचना
तुम्हारा विराट अस्तित्व
समाया है मेरे मन में
और मैं .....
तुम्हारा विराट अस्तित्व
समाया है मेरे मन में
और मैं .....
रहना चाहती हूँ हरपल
रजनीगंधा से उठती
भीनी-भीनी महक सी
तुम्हारे चितवन में
चाहती हूँ सिर्फ इतना
कि मेरा हर सुख हो
तुम्हारी स्मृतियों में
और दुःख ........
केवल विस्मृतियों में................! संध्या शर्मा
रजनीगंधा से उठती
भीनी-भीनी महक सी
तुम्हारे चितवन में
चाहती हूँ सिर्फ इतना
कि मेरा हर सुख हो
तुम्हारी स्मृतियों में
और दुःख ........
केवल विस्मृतियों में................! संध्या शर्मा
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ..
ReplyDeleteसुन्दर और भावपूर्ण रचना है |
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