धीरे धीरे हर सैलाब उतर जाता है
वक्त के साथ न जाने प्यार किधर जाता है
यूँ ना तोड़ो झटके से तुम नींदें मेरी
आँखों से फिर सपना कोई झर जाता है
आने जाने वालों से ये कहती सड़कें
इस चौराहे से इक रस्ता घर जाता है
बचपन और जवानी तो आनी जानी है
सिर्फ़ बुढ़ापा उम्र के साथ ठहर जाता है
सीमा के उस पार भी माएँ रोती होंगी
बेटा होता है जो सैनिक मर जाता है
अपने से ज़्यादा रहता हूँ तेरे बस में
चलता है ये साया जिस्म जिधर जाता है
सुख में मेरे साथ खड़े थे बाहें डाले
दुख आने पे अक्सर साथ बिखर जाता है
कुछ बातें कुछ यादें दिल में रह जाती हैं
कैसे भी बीते ये वक़्त गुज़र जाता है
माना रोने से कुछ बात नहीं बनती पर
रोने से कुछ दिल का बोझ उतर जाता है ! …… दिगंबर नासवा
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