Friday, February 21, 2014

गुलज़ार ..... पतझड़ में जब

पतझड़ में जब
पत्ते गिरने लगते हैं 
क्या कहते होंगे शाखों से?
कहते होंगे न,
हम तो अपना मौसम जी कर जाते हैं

तुम खुश रहना..
तुमको तो हर मौसम की
औलादें पाल के रुखसत करनी होंगी

शाख की बारी आई थी
जब कटने की
तो पेड़ से बोली
तुमको मेरी उम्र लगे
तुमको तो बढ़ना है
उंचा होना है
दूसरी आ जायेगी
मुझको याद न रखना

पेड़ ज़मीन से क्या कहता?
जब खोद खोद कर
उसके जड़ों के टांकें तोड़े
और उसको ज़मीन से अलग किया
उलटा ज़मीन को कहना पड़ा
याद है एक छोटे से बीज से
तुमने झाँक कर देखा था
जब पहली पत्ती आई थी
फिर आना
और मेरी कोख से
पैदा होना
अगर मैं बची रही
अगर मैं बची रही
                ....गुलज़ार 

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