हाल नहीं कुछ खुलता मेरा कौन हूँ , क्या हूँ , कैसा हूँ
मस्त हूँ या हुशियारों में हूँ , नादां हूँ , या दाना हूँ
कान से सबकी सुनता हूँ और मुंह से कुछ नहीं कहता हूँ
होश भी है बेहोश भी हूँ कुछ जागता हूँ कुछ सोता हूँ
कैसा रंज और कैसी राहत किस की शादी किस का ग़म
यह भी नहीं मालूम मुझे मैं जीता हूँ या मरता हूँ
कारे - दीं कुछ बन नहीं आता दावा है दींदारी का
दुनिया से बेजार हूँ लेकिन रखता ख्वाहिशे - दुनिया हूँ
यार हो मेरे दिल में और मैं का'बा में बुतखाने में
घर में वो मौजूद है और मैं घर - घर ढूंढता फिरता हूँ
-ज़फ़र
मस्त हूँ या हुशियारों में हूँ , नादां हूँ , या दाना हूँ
कान से सबकी सुनता हूँ और मुंह से कुछ नहीं कहता हूँ
होश भी है बेहोश भी हूँ कुछ जागता हूँ कुछ सोता हूँ
कैसा रंज और कैसी राहत किस की शादी किस का ग़म
यह भी नहीं मालूम मुझे मैं जीता हूँ या मरता हूँ
कारे - दीं कुछ बन नहीं आता दावा है दींदारी का
दुनिया से बेजार हूँ लेकिन रखता ख्वाहिशे - दुनिया हूँ
यार हो मेरे दिल में और मैं का'बा में बुतखाने में
घर में वो मौजूद है और मैं घर - घर ढूंढता फिरता हूँ
-ज़फ़र
बहुत सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार...
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