Friday, March 21, 2014

अनुलता ....... पनीली उदासियाँ


ओक में भर लिया था
तुम्हारा प्रेम
मैंने,
रिसता रहा बूँद-बूँद
उँगलियों की दरारों के बीच से |
बह ही जाना था उसे
प्रेम जो था !

रह गयी है नमी सी
हथेलियों पर
और एक भीनी
जानी पहचानी महक
प्रेम की |

ढांपती हूँ जब  कभी
हथेलियों से
अपना उदास चेहरा,
मुस्कुरा उठती हैं तुम्हारी स्मृतियाँ
और मैं भी !

कि लगता है
वक्त के साथ
रिस जाती हैं धीरे धीरे
मन की दरारों से
पनीली उदासियाँ भी |    ......... अनुलता 

4 comments:

  1. हाँ वक्त के साथ सब रीता हो जाता है.......

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  2. शुक्रिया निवेदिता <3
    अपनी रचना को आपके ब्लॉग पर पढ़ना सुखद है !!
    सस्नेह
    अनु

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  3. अभिव्यक्ति भी
    अनुभूति भी...!

    बहुत सुन्दर...

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  4. एक बार पुन: पढ़वाने के लिये आभार

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