Wednesday, March 5, 2014

मीनाक्षी मिश्रा तिवारी ........... टुकड़े

सब कुछ साबुत जब दिखता है ऊपर से ,

बहुत कुछ टूटा होता है अन्दर !!

कई टुकड़े ......
स्व-अस्तित्व के,
स्वाभिमान के,
क्षत-विक्षत भावनाओं के,
अपनों ही की- ईर्ष्या के,
और उन पैने शब्दों के,
जिनका विष नष्ट नहीं होता कभी ...... !!

हाथ डालकर टटोलते हुए,
चुभ जाती हैं पैनी नोंकें कई बार,
उन टुकड़ों की जो बिखरे हैं ,
और लहुलुहान कर जाती हैं मन !!

बाहर सब साबुत होता है !! ....... मीनाक्षी मिश्रा तिवारी 

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