दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के
वो जा रहा है कोई शबे-गम गुज़ार के
वीरां है मैकदा ख़ुमो-सागर(1) उदास है
तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के
इक फुर्सते-गुनाह मिली ,वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवर दिगार के
दुनियां ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफरेब हैं गम रोज़गार के
भूले से मुस्करा तो दिए थे वो आज फैज़
मत पूछ बल-बले दिले नाकर्दाकार(2) के
-फैज़
.............................................................................................................................
1 -शराब का प्याला और सुराही
2-अनुभवहीन दिल
वो जा रहा है कोई शबे-गम गुज़ार के
वीरां है मैकदा ख़ुमो-सागर(1) उदास है
तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के
इक फुर्सते-गुनाह मिली ,वो भी चार दिन
देखे हैं हमने हौसले परवर दिगार के
दुनियां ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफरेब हैं गम रोज़गार के
भूले से मुस्करा तो दिए थे वो आज फैज़
मत पूछ बल-बले दिले नाकर्दाकार(2) के
-फैज़
.............................................................................................................................
1 -शराब का प्याला और सुराही
2-अनुभवहीन दिल
:) faiz sahab ka jabab nahi...
ReplyDeleteफैज़ की ग़ज़ल को क्या कहें , बस शुभानाल्लाह .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया |
ReplyDeleteबधाई ||
क्या बात
ReplyDeleteबहुत सुंदर
दुनियां ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
ReplyDeleteतुझसे भी दिलफरेब हैं गम रोज़गार के !
बहुत खूब..
लिखने वाले भी क्या लिख जाते हैं...!
ReplyDeleteवीरां है मैकदा (मयकदा ) ख़ुमो-सागर(1) उदास है।।।।।।।।।मयकदा ........
तुम क्या गये कि रूठ गये दिन बहार के
फैज़ अहमद फैज़ साहब को पढ़वाया शुक्रिया .
बहुत खूब लिखा आपने |
ReplyDeleteइस समूहिक ब्लॉग में आए और हमसे जुड़ें :- काव्य का संसार
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फैज़ साहब की यह ग़ज़ल बहुत मशहूर है. जहां को कृपया जहान कर लें.
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