Sunday, October 28, 2012

ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ यह सवाल किया |..... - इक़बाल

ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ यह सवाल किया |
जहां में क्यों  न मुझे  तूने लाज़वाल किया ?
मिला जवाब  कि तस्वीरखाना  है  दुनिया |
शबे - दराज़  अदम  का फ़साना है दुनिया ||
हुई  है  रंगे - तग़य्युर से जब नमूद इसकी |
वही हसीं  है  हक़ीक़त  ज़वाल है  जिसकी ||
कहीं  करीब  था  ये  गुफ़्तगू क़मर ने सुनी |
फ़लक पे आम हुई अख्तरे - सहर ने सुनी ||
सहर ने तारे से सुन कर सुनाई शबनम को |
फ़लक की बात बता दी ज़मीं के महरम को ||
फिर आये फूल के आंसू पयामे - शबनम से |
कली का नन्हा-दिल दिल खून हो गया ग़म से ||
चमन  से  रोता  हुआ  मौसमे - बहार  गया |
शबाब  सैर  को  आया  था , सोगवार  गया ||
                                                       - इक़बाल 
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लाज़वाल :अमर
शबे - दराज़ : लम्बी रात 
अदम : मृत्यु 
रंगे - तग़य्युर :परिवर्तनशीलता के रंग से 
ज़वाल :मिटना 
क़मर :चाँद 
अख्तरे - सहर : सुबह का तारा 
महरम :भेदी 

2 comments:

  1. अच्छी प्रस्तुति ।

    शुभकामनायें ।।

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  2. सुंदर रचना और बढिया संकलन

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