ख़ुदा से हुस्न ने इक रोज़ यह सवाल किया |
जहां में क्यों न मुझे तूने लाज़वाल किया ?
मिला जवाब कि तस्वीरखाना है दुनिया |
शबे - दराज़ अदम का फ़साना है दुनिया ||
हुई है रंगे - तग़य्युर से जब नमूद इसकी |
वही हसीं है हक़ीक़त ज़वाल है जिसकी ||
कहीं करीब था ये गुफ़्तगू क़मर ने सुनी |
फ़लक पे आम हुई अख्तरे - सहर ने सुनी ||
सहर ने तारे से सुन कर सुनाई शबनम को |
सहर ने तारे से सुन कर सुनाई शबनम को |
फ़लक की बात बता दी ज़मीं के महरम को ||
फिर आये फूल के आंसू पयामे - शबनम से |
फिर आये फूल के आंसू पयामे - शबनम से |
कली का नन्हा-दिल दिल खून हो गया ग़म से ||
चमन से रोता हुआ मौसमे - बहार गया |
शबाब सैर को आया था , सोगवार गया ||
- इक़बाल
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लाज़वाल :अमर
शबे - दराज़ : लम्बी रात
अदम : मृत्यु
रंगे - तग़य्युर :परिवर्तनशीलता के रंग से
ज़वाल :मिटना
क़मर :चाँद
अख्तरे - सहर : सुबह का तारा
महरम :भेदी
अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteशुभकामनायें ।।
सुंदर रचना और बढिया संकलन
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