मधुप , नहीं अब मधुबन तेरा !
तेरे साथ खिलीं जो कलियाँ ,
रूप - रंगमय कुसुमावलियाँ ,
वे कब की धरती में सोई होगी उनका फ़िर न सबेरा !
मधुप ,नहीं अब मधुबन तेरा !
नूतन मुकुलित कलिकाओं पर,
उपवन की नव आशाओं पर
नहीं सोहता , पागल , तेरा दुर्बल - दीन - अमंगल फ़ेरा !
मधुप नहीं अब मधुबन तेरा !
जहाँ प्यार बरसा था तुझ पर ,
वहाँ दया की भिक्षा ले कर
जीने की लज्जा को कैसे सहता , है मानी ,मन तेरा !
मधुप , नहीं अब मधुबन तेरा !
साभार - हरिवंश राय बच्चन
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